जनजातीय लोक संस्कृति सनातनी परंपराओं का एक अनोखा पर्व है भगोरिया

खरगोन (संतोष अवास्या पिपलझोपा)। आदिवासी संस्कृति के भगोरिया पर्व एक आनन्द का उत्सव ढह है, जहां गीत, संगीत और मस्ती के साथ आदिवासी समाज होली का स्वागत करते हैं ! हमारे जिले (खरगोन) सहित खंडवा बुरहानपुर बड़वानी झाबुआ अलीराजपुर के अंचलों में इन दिनों भगोरिया उत्सव की महाधुम रहती हैं!ऐसी मान्यता है कि भगोरिया की, शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी जो कि आज विश्व प्रासिद्ध भागोरिया हॉट के नाम से विख्यात हुआ है! भगोरिया हाट धीरे धीरे प्रचलन में आया भगोरिया हाट के अन्य नाम जो हम सुनते हैं जैसे कि भोंगर्या हाट, भगोरिया हाट, भोंगरियू हाट, भगोरियो हाट,ये सभी नाम बारेली,राठवी, पालवी, क्षेत्रीय बोली के अनुसार रखे गए हैं जिनका उच्चारण अपने अपने क्षेत्र के अनुसार आदिवासी समुदाय के लोग करते हैं! जीसे मनाने हेतू वर्ष भर अपने काम, व्यापार व्ययसाय के लिए अन्यत्र स्थान पर पलायन के रूप में गए हुए! समाज के बंधु होली के 7 दिन पूर्व अपने आसपास के कस्बा क्षेत्रों में आयोजित होने वालेसप्ताहिक भागोरिया हाट 7 मार्च से 13 मार्च तक(होली की खरीदारी) अपने आप में एक अलग ही साझा संस्कृति का केंद्रीकरण दिखाई पड़ता है!भगोरिया हाट बाजार का केंद्र न बनकर,यह एक तरफ से जनजातीय समाज का प्रति वर्ष लगने वाला कुंभ मेला है जहां पर, जनजातिय समुदायो की संस्कृति परंपरा रीति रिवाज को आज भी संजोए रखकर,वर्ष में एक बार सबके साथ मिलकर अलग अलग रीति रिवाज परंपराओं का समावेश देखने को मिलता हैं! भगोरिया हाट में अनेकों प्रकार की संस्कृति का भी समावेश होता है अपने ही अंदाज में गीत गाते ढोल मांदल बजाते नृत्य करते जनजाति समाज के युवा युवती इस दिन सज धजकर आते हैं भगोरिया हाट सामाजिक समरसता का पर्व है!भगोरिया त्यौहार मिलने जुलने व नाचने गाने का, खुशियों में सबको शामिल करने का पर्व है!यह पर्व होली के आगमन और चिंताओं के समापन का है! आज इसकी लोकप्रियता इतनी है की विदेशों से लोग इसके दर्शन करने हाट पहुंचते हैं,गाते नाचते हैं!

भगोरिया (भोंगर्या) समझ लीजिए कि एक हाट है,बाजार का मात्र है जिसमें होली से पूर्व आदिवासी समाज पूजन सामग्री खरीदने के लिए जाते हैं यहां परंपरा पाषाण काल से या आदि अनादि काल से चली आ रही है! यह मूलतः जनजातीय (आदिवासी) अंचलों के आदिवासी इलाकों में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है!

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