संस्कार भारतीय सनातन संस्कृति के प्राण हे.. मोरे

पंच कुंडिय गायत्री यज्ञ में आहुति देने वालों को मिला महाकुंभ स्नान का पुण्य

खरगोन श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण ही संस्कृति रूपी सीता को बचाने हेतु महत्वपूर्ण है,समाज आज जिस विध्वंस के मुहाने पर खड़ा है उसका मूल संस्कारों का विलुप्त होना है,हमारी भारतीय संस्कृति दिव्य संस्कारों के द्वारा ही पूरे विश्व मे पहचानी जाती है,हमारे वेदों का दिव्य संदेश भी यही है कि-"जन्मना जायते शुद्रः संस्कारात द्विजः उच्यते",अर्थात जन्म से सभी शुद्र ही होते है परंतु संस्कारों के द्वारा ही द्विजत्व प्राप्त किया जा सकता है,इसलिए संस्कार भारतीय सनातन संस्क्रति का प्राण है। उक्त उदगार शिव नवरात्री के मंगल पावन पर्व एवं परम वंदनीय माताजी भगवती देवी शर्मा की जन्मशताब्दी वर्ष और अखण्ड दीपक की जन्मशताब्दी वर्ष 2026 के अंतर्गत श्री महामृत्युंजय धाम गांधी नगर में रविवार को आयोजित पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ एवं संस्कार महोत्सव में योगाचार्य सौरभ मोरे,परिव्राजक गायत्री शक्तिपीठ खरगोन ने व्यास गादी से व्यक्त किए। मोरे कहा की संस्कारों के क्रम में सर्वप्रथम पुंसवन संस्कार से ही शुभारम्भ होता है इसके अंतर्गत माता के गर्भ में आई जीवात्मा को वेदमंत्रों के माध्यम से ऊर्जावान,प्राणवान बनाकर बीज की तरह शोधित किया जाता है,जिस तरह शोधित और उर्जित बीज के द्वारा फसलें अछि आती है उसी तरह पुंसवन संस्कार में गर्भ में पल रहे बीज रूपी शिशु को माता द्वारा श्रेष्ठ वातावरण, आहार विहार श्रेष्ट रखकर शोधित किया जाता है तब जाकर दिव्य संतति को जन्म दिया जाता है,अर्थात नस्लें अच्छी आती है।

फिर जो जीवात्मा जन्म के बाद इस संसार मे आई है उसी का क्रमशः नामकरण,अन्नप्राशन,मुंडन,विद्यारंभ आदि संस्कार किये जाते है।

नामकरण में यथानाम तथा गुण का भाव कर उसको यज्ञीय वातावरण में उसकी पहचान संसार से कराई जाती है अर्थात उसका नाम रखा जाता है।

अन्नप्राशन में शिशु जब छः माह का होता है तब उसे अन्नो वै ब्रह्म का भाव कराकर यज्ञ में खीर की आहुति देकर उसके अन्नमय कोश को प्राणवान बनाएं रखने के लिए अन्नप्राशन किया जाता है, जिससे जो भी भोजन शिशु जीवन पर्यंत करता है श्रेष्ठ आहार लेकर अपने चिंत्तन चरित्र को आदर्श बनाए रखता है ओर ये सब अंक मन के प्रभाव के कारण ही होता है।

मुंडन संस्कार में उसके पिछले जन्मों के कुसंस्कारों को मुंडन के माध्यम से दूर करने का भाव किया जाता है जिसके उसके जीवन मे गहरा ओर सात्विक प्रभाव पड़ता है।

तब जाकर वो जब समाज की सेवा लिए तैयार होता तो उसके जीवन मे शिक्षा और विद्द्या के महत्व को विद्यारम्भ संस्कार कराकर,जीवन जीने की दिव्य कला सिखाई जाती है,इस तरह जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तक मनुष्य को संस्कारो के पुण्य परम्परा चलाकर उसे संसार सागर में कर्मयोद्धा बनाकर,मानव से महामानव,महामानव से देव मानव,नर से नारायण,पुरुष से पुरुषोत्तम की ओर अग्रसर किया जाता है।


इसलिए संस्कारों का मानव मस्तिष्क में एक वैज्ञानिक विलक्षण प्रभाव पड़ता है।

ओर ये सब संस्कार परम्परा हमारे ऋषियों की शोध साधना का प्रभाव ही है कि हमारा भारत आदि अनादि काल से ही सिद्धो,सन्तो महापुरुषों अवतारी चेतनाओं की भूमि रहा है।

 इसी के चलते आज विदेशी लोग भी भारत मे आकर हमारी सनातन संस्कार परम्परा को अपना रहे है,जीवन मे उत्साह,आनन्द और असीम शांति की अनुभूति कर रहे हैं।

श्री महामृत्युंजय धाम में आयोजित पंच कुंडिय गायत्री महायज्ञ एवं संस्कार महोत्सव में जल से भरे कलश में वैदिक मंत्रोच्चार से पवित्र नदियों के जल का आव्हान कर यज्ञ में बैठे सनातनीयो पर पवित्र जल का सिंचन महाकुंभ के स्नान के भाव के साथ किया इस अवसर पर मुख्य यजमान भागीरथ बडोले, मंदिर समिति अध्यक्ष शंकरलाल गुप्ता, कोषाध्यक्ष अनिल सोलंकी, समाज सेवी सीताराम भड़ोले , दीप जोशी, रामदास चौधरी आदि जोड़े सहित हवन में बैठे थे। इस अवसर बड़ी संख्या में सनातन धर्मावलंबी परिजन उपस्थित थे।


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