शहर में बिना अनुमति के चल रही कई पैथोलॉजी....आज तक नहीं हुई जांच

खून पेशाब की जांच के नाम पर चल रहा गोरखधंधा

खरगोन। शहर में कलेक्शन सेंटर के नाम पर पैथोलॉजी लैबों का संचालन किया जा रहा है। यदि शहर में देखा जाए तो पैथोलॉजी लैब उसी तरह खुली हुई जिस तरह झोलाछाप डॉक्टर्स के क्लीनिक है सूत्रों ने जानकारी में बताया कि वैसे तो अधिकांश लैब बिना अनुमति के ही चल रही है, लेकिन कुछ पैथोलॉजी संचालकों ने अनुमति भी ले रखी है। कई पैथोलॉजी लैब व डायग्नोस्टिक सेंटर दुकानों में बिना मापदंड के चल रहे हैं। लेकिन, जिला मुख्यालय में ही 40 से ज्यादा पैथोलॉजी लैब चल रही हैं। इन पैथोलॉजी लैबो का संचालन धड़ल्ले से किया जा रहा है और मरीजों के सैंपल लेकर जांच की जा रही है। कई लैबे शासन की दिशा निर्देश के बिना संचालित है जिससे मरीजों को परेशान भी होना पड़ता है अवैध और मानकों का उल्लंघन करने वाले पैथोलॉजी केंद्रों के संचालक के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए ऐसा आम लोगो का सोचना ही। लेकिन स्वास्थ्य विभाग को न तो मरीजों की चिंता दिख रही है और न ही शासन के राजस्व के हो रहे नुकसान से कोई मतलब है। उनको सिर्फ अपना स्वार्थ से मतलब है। यही कारण है कि केंद्रों के पंजीयन को लेकर विभाग भी उदासीन दिख रहा है। 

कमीशनखोरी का खेल 

सूत्र से मिली जानकारी के अनुसार मरीज अपना इलाज करवाने डॉक्टर के पास जाता है, तो उन्हे खून पेशाब की जांच के लिए उसी लेबो में भेजा जाता है जहा डॉक्टर का कमीशन रहता है छोटी से छोटी जांच में भी 200 से 300 रुपए खर्च हो जाते हैं। टेस्ट के बाद जिस डॉक्टर का पर्चा होता है, उसके पास ली गई फीस अनुसार कमीशन पहुंच जाता है। कई लैब संचालक महीने में इनका हिसाब करते हैं। सूत्रों ने जानकारी में बताया कि ये कमीशन 30 से 40 प्रतिशत तक होता है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षो में लैब खुलने की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं जो डॉक्टर पहले कभी जांच नहीं करवाया करते थे, वे भी अब जांच करवाने लग गए हैं। और स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत से लैब संचालकों को कार्रवाई का कोई डर नहीं रहता है। मरीजों से मनमानी राशि भी यह वसूलते हैं, जिला अस्पताल के आस पास बड़ी संख्या पैथोलॉजी लैबे संचालित हो रही है यदि देखा जाए तो उनको किसी का सरक्षण प्राप्त है ऐसा भी आम लोगो का सोचना है। और सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकारी डॉक्टर्स के अधिकांश पर्चे इन लैब में जांच के लिए आते है, जिसका कमीशन भी उन्हें पहुंचता है। 

मरीज का हो रहा आर्थिक शोषण

स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण शहर में पैथोलॉजी धड़ल्ले से चलाये जा रहे हैं। इतना ही नहीं लैब संचालकों द्वारा चिकित्सकों से सांठ-गांठ कर मरीजों का शोषण किया जा रहा है। दरअसल प्रावधानों के अनुसार प्रशिक्षित लैब तकनीशियन को ही मरीजों की पैथोलॉजी जांच का अधिकार है। लेकिन, शहर में संचालित अधिकतर पैथोलॉजी लैब में तकनीशियन हैं ही नहीं। अप्रशिक्षित कर्मियों द्वारा ही मरीजों की जांच की जाती है।

हर लैब पर जांचों के शुल्क में अंतर  

विभाग की गंभीरता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अब तक जिले में पैथोलॉजी व डायग्नोस्टिक सेंटर का निबंधन किया गया है। जबकि दो सौ से अधिक जांच और डायग्नोस्टिक सेंटरों का संचालन जिले में हो रहा है। निर्धारित प्रावधानों के अनुसार किसी भी पैथोलॉजी केंद्र के संचालन के लिए मूलभूत सुविधाओं का होना आवश्यक है। वही यहां प्रत्येक जांच के लिए रेट चार्ट भी लगाने का स्पष्ट निर्देश है। इसके पीछे मूल उद्देश्य यह है कि जांच के नाम पर मरीजों से निर्धारित राशि ही वसूल की जाए और इसमें मनमानी न हो। लेकिन, शहर के अधिकतर जांच केंद्रों पर शुल्क तालिका नहीं लगी है। इसके कारण जैसा मरीज, वैसा शुल्क का फॉर्मूला अपनाया जा रहा है। एक ही जांच के लिए अलग-अलग मरीजों से अलग-अलग राशि की वसूली हो रही है। आम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था मुहैया कराने के लिए सरकार द्वारा भले ही लाख दावे किए जा रहे हो। लेकिन, हकीकत यही है कि आज भी जिले में संचालित अधिकांश पैथोलॉजी लैब बिना निबंधन के संचालित हैं। आलम यह है कि अधिकांश लेबो में अप्रशिक्षित कर्मियों द्वारा ही मरीजों का खून, पेशाब व अन्य जांच की जा रही है।

लाइसेंस, टेस्टिंग दर, बायोमेडिकल वेस्ट, फायर सेफ्टी की जांच का दरकार

नियम के विपरीत चल रहे सेंटर

कुछ आधिकारिक सूत्रों का सोचना है कि लैब संचालन के लिए शासन द्वारा विधिवत नियम लागू किए गए हैं, लेकिन जिले में आश्चर्यजनक रुप से डीएमएलटी व उनके सहयोगी ही लैब संचालित कर रहे हैं, वे ही रिपोर्ट में साइन करके दे रहे हैं, जबकि लैब संचालक के लिए एमबीबीएस, एमडी पैथोलॉजिस्ट होना चाहिए। यदि देखा जाए तो इन नियमों के तहत लैबो का संचालित होना चाहिए। परंतु लैब संचालकों के पास न ही नियमानुसार पॉल्यूशन बोर्ड का रजिस्ट्रेशन है, और न ही पंजीकृत मेडिकल वेस्ट फर्म का पंजीयन है, न ही MCI पंजीकृत होता है, न ही नगर पालिका की एनोसी है, न ही फायर एनोसी होती है, न ही रेट लिस्ट होती है, और न ही शुद्ध पेयजल, वेटिंग रूम व टॉयलेट होते है। 

जिला प्रशासन कभ करेगा कार्रवाई 

सोचने वाली बात तो यह है कि इसी आधार पर चिकित्सकों द्वारा मरीजों को दवा लिखी जा रही है। अब सवाल उठता है कि जिन मरीजों के खून, पेशाब व अन्य समस्याओं से संबंधित जांच ऐसे पैथोलॉजी लैब में की जाती है। जिसका ना तो विभाग द्वारा निबंधन किया गया है और ना ही उस लैब में प्रशिक्षित तकनीशियन द्वारा जांच की गयी। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा दी गयी रिपोर्ट भी सवालों के घेरे में आता है। इसका खामियाजा बिना निबंधन व अप्रशिक्षित तकनीशियन द्वारा संचालित लेबो में जांच कराने वाले मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। इसकी जिम्मेदारी भले ही कोई नहीं ले, लेकिन इसका खामियाजा मरीजों को आर्थिक, शारीरिक व मानसिक रुप से झेलना पड़ता है। सबसे ज्यादा नुकसान तो गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों को होती है। जिनके लिए बेहतर इलाज के लिए बाहर अन्यत्र जाना संभव नहीं होता है। बावजूद आज धड़ल्ले से ऐसे पैथोलॉजी लैब खुल रहे हैं। जिस पर जिला प्रशासन अब कितना ध्यान देता है ये समय बताएगा। 

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