सुदृढ़ समाज और राष्ट्र के हित में महिला, पुरुष के मध्य प्रतिद्वंद्विता स्थापित नहीं की जाए वरन सहयोगात्मक संबंध बढ़ाए जाएं

शिक्षित एवं संपन्न महिलाओं को चाहिए कि वे पिछड़ी महिलाओं के लिए जो भी कर सकती हैं करें

प्रो.डॉ. सावित्री भगोरे-सहायक प्राध्यापक, शा.पीजी कॉलेज खरगोन मप्र.

आज सबसे ज्यादा महिला सशक्तिकरण की बातें होंगी। लेकिन महिला सशक्तीकरण क्या है यह कोई नहीं जानता। महिला सशक्तीकरण एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया है। हमने अति महत्वाकांक्षा को सशक्तिकरण मान लिया है। मुझे लगता है महिला दिवस का औचित्य तब तक प्रमाणित नहीं होता जब तक कि सच्चे अर्थों में महिलाओं की दशा नहीं सुधरती। महिला नीति है लेकिन क्या उसका क्रियान्वयन गंभीरता से हो रहा है। यह देखा जाना चाहिए कि क्या उन्हें उनके अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। वास्तविक सशक्तीकरण तो तभी होगा जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी और उनमें कुछ करने का आत्मविश्वास जागेगा। 

मनु स्मृति में स्पष्ट बताया गया है कि 

"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः"

जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवता रमण करते हैं, वैसे तो नारी को विश्वभर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है किंतु भारतीय संस्कृति एवं परंपरा में देखें तो स्त्री का विशेष स्थान सदियों से रहा है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वर्तमान में यदि खुले मन से आकलन करें तो पाते हैं कि महिलाओं को मिले सम्मान के उपरांत भी ये दो भागों में विभक्त हैं। एक तरफ एकदम से दबी, कुचली, अशिक्षित और पिछड़ी महिलाएं हैं तो दूसरी तरफ प्रगति पथ पर अग्रसर महिलाएं। कई मामलों में तो पुरुषों से भी आगे नई ऊंचाइयां छूती महिलाएं हैं। 

जब भी महिलाओं की स्थिति को सुधारने की बात आती है तो पहला नाम सावित्रीबाई फुले का जरूर आता है। इन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया, सावित्रीबाई फुले ने अज्ञान, शिक्षा के लिए जाग्रत हो जाओ, श्रेष्ठ धन, अंग्रेजी मय्या जैसे लेखों के माध्यम से महिला शिक्षा पर जोर दिया। आपको बता दें कि सावित्रीबाई फुले की 9 साल की उम्र में शादी कर दी गई थी, लेकिन, उनकी पढ़ाई-लिखाई में रुचि को देखते हुए उनके पति ज्योतिराव फुले ने पूरा साथ दिया, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 18 साल की उम्र में सावित्रीबाई ने महिलाओं को पढ़ाना शुरू कर दिया था। उन्होंने 1 जनवरी,1848 में ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर गुलाम भारत का पहला महिला विद्यालय पुणे में खोला।

दुर्गाबाई देशमुख

दुर्गाबाई ने बाल विवाह के विरोध में आवाज उठाई, आपको बता दें कि दुर्गाबाई की 8 साल की उम्र में शादी की थी लेकिन उन्होंने 15 साल की उम्र में इसे खत्म कर दिया। इसके बाद उन्होंने साल 1953 में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री चिंतामन देशमुख से दूसरी शादी कर ली थी, साथ ही दुर्गाबाई ने देवदासी प्रथा का भी विरोध किया।

कमलादेवी चट्टोपाध्याय

कमलादेवी चट्टोपाध्याय का देश की स्वतंत्रता में अहम योगदान रहा है। कमलादेवी ही थीं जिन्होंने 1942 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनकर महिलाओं को मैटरनिटी लीव देने की बात उठाई थी।

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