आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद मरीज से इलाज के लिए वसूले रुपए

सीएम के समक्ष मामला आने पर हरकत में आए अधिकारी, जिला अस्पताल के दो बाबू निलंबत

सीएमएचओ, मलेरिया अधिकारी सहित प्रशासकीय अधिकारी को कमिश्नर ने जारी किए नोटिस 

खरगोन। जिले में निजी अस्पताल संचालक इलाज के लिए मरीजों से मोटी फीस वसूलने से बाज नहीं आ रहे हैं। आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद घुघरियाखेड़ी की महिला मरीज के परिजन से सवा लाख रुपए वसूल लिए। जिसे लेकर परिजनों ने सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत की। मंगलवार को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा मासिक समाधान ऑनलाइन माध्यम से शिकायतकर्ताओं को सुना गया, तो यह खरगोन का मामला प्रकाश में आया। सीएम के संज्ञान में आने पर अधिकारी भी हरकत में आए। कलेक्टर शिवराजसिंह वर्मा ने मामले में जिला अस्पताल के दो बाबुओं को निलंबत किया है, तो वहीं कमिश्नर डॉ. पवन शर्मा द्वारा सीएमएचओ डॉ. डीएस चौहान, मलेरिया अधिकारी डॉ. मनोज पाटीदार और प्रशासकीय अधिकारी जीएस सोलंकी को तलब करते हुए नोटिस जारी कर सात दिनों में जवाब मांगा है। कोविड पेसेंट के उपचार के बदले ली राशि

घुघरियाखेड़ी यशवंत कर्मा ने शिकायत में बताया कि वह अपनी पत्नी विद्या कर्मा को कोविड होने पर इलाज के लिए खरगोन के निजी अस्पताल सांई समर्थ लेकर पहुंचे थे। जहां सात दिनों तक भर्ती कर इलाज किया। कर्मा के पास आयुष्मान कार्ड होने के बावजूद अस्पताल प्रबंधन द्वारा इलाज के लिए एक लाख 21 हजार 821 रुपए लिए।  मामला 2021 का है। 18 जून 2021 को कर्मा ने सीएम हेल्पाइल पर शिकायत की। जिसके आधार पर 30 अगस्त 2022 को जिला अस्पताल प्रशासन द्वारा जांच दल का गठन किया गया। जांच के बाद शिकायत सही पाई गई।  निजी अस्पताल को आयुष्मान भारत निरामयम योजना अंतर्गत शिकायकर्ता को 61267 रुपए वापस लौटाना पड़ेग। मरीज के परिजनों से पैकेज के अतिरिक्त राशि वसूल करना पाया गया। सीएमएचओ डॉ. डीएस चौहान द्वारा साईं समर्थ अस्पताल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इधर, कलेक्टर और कमिश्नर ने भी कार्रवाई

समाधान ऑनलाइन से पहले कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा ने जिला चिकित्सालय के दो बाबुओं निहाल सिंह सिसौदिया सहायक ग्रेड-2 और अजय मोरे सहायक ग्रेड-3 को सिविल सेवा ( वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम 1966 के नियम 9 के तहत तत्काल प्रभाव से निलंबित किया है। हालांकि बाबुओं का कहना है कि उन्हें कार्रवाई में बली का बकरा बनाया गया है। क्योंकि जिस समय का यह प्रकरण है, उस वक्त न तो उनके पास आयुष्मान विभाग का कोई जिम्मा था ना ही शाखा का प्रभार।

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