6 मार्च को प्रदोषकाल में होगा होलिका का दहन, 7 को रहेगी धुलेंडी
कोई भी भ्रम एवं संशय मे ना पड़े -पंडित ठक्कर
खरगोन। इस वर्ष होलिका दहन व पूजन, पंचांगों के मत-मतांतर अनुसार 6 मार्च को प्रदोष काल में होगा। वहीं 7 मार्च की सुबह सूर्याेदय से पूर्व भी होलिका दहन के शुभ मुहूर्त है। धुलेंडी रंग उत्सव 7 मार्च को ही मनाया जाएगा। कोई भी भ्रम एवं संशय मे ना पड़े। यह बात अखिल भारतीय संत एवं पुजारी समाज के जिलाध्यक्ष पंडित जगदीश ठक्कर ने कहीं। उन्होंने कहा कि निर्णय सागर पंचांग, निमच, सिद्ध विजय पंचांग, श्री कुल्लुका पचांग व खरगोन तिथि पंचाग के अनुसार 6 मार्च सोमवार को प्रदोष काल में होलिका दहन बताया गया है। शाम 6.38 मिनट से एवं सिद्ध विजय पंचांग अनुसार शाम 6.29 मिनट से रात्रि 8 बजे तक है। वही नारायण विजय पंचांग व महाकाल पंचांग उज्जैन के अनुसार 7 मार्च मंगलवार की सुबह 5.56 मिनट के बाद व सुर्याेदय से पूर्व होलिका दहन कर सकते हैं। पंडित ठक्कर ने कहा कि ज्यादा कोई भी भ्रम एवं संशय में ना पड़े और अपने विवेक अनुसार दोनों मुर्हुतों में से किसी एक का चयन कर होलिका दहन कर सकते है।
प्रदोषकाल में होलिका दहन श्रेष्ठ
शास्त्रों के मतानुसार प्रदोषकाल में भद्रा हो तो उसके मुख की दो घडी (48 मिनट) त्याग कर होली का दहन का प्रमाण मिलता है | अत: होली का दहन सोमवार सायंकाल 6.33 से 7.22 तक शुभ होगा। पंडित ठक्कर ने बताया कि अलग-अलग परंपराओं के अनुसार होलिका पूजन अलग-अलग समय पर होता है। कुछ लोग ठंडी होली की, तो कुछ लोग दहन होली की पूजा करते हैं। ठंडी होली की पूजा करने वाले 6 मार्च की शाम 4.15 मिनट से पूर्व पुजन कर लें। प्रदोषकाल में होलिका दहन श्रेष्ठ है। होली की रात को दारुण रात्रि भी कहा गया हैं। इस रात में पुजन, पाठ, जाप का विशेष महत्व है। विद्वान व ब्राह्मणों द्वारा होली की रात मे गोपाल सहस्त्रनाम, कनकधारा स्तोत्र एवं 11 ब्राह्मणों द्वारा दुर्गासप्तशति का पाठ करवाना चाहिए। साथ ही रामरक्षास्तोत्र, सुंदरकांड एवं हनुमान चालीसा का भी पाठ करना चाहिए। अपने गुरु मंत्र, इष्टमंत्र का सर्वाधिक जाप करने से लाभ की प्राप्ति होती है। जो लोग आगम तंत्र मार्ग में दिक्षित है, उन्हें अपनी गुरु-परंपरा के अनुसार पूजन-पाठ व हवन इत्यादि कार्य करने चाहिए।
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