नवग्रह मेले के लिए हुआ भूमिपूजन
पारंपरिक रूप से लगाया जाएगा मेला-सांसद श्री पटेल
खरगोन। खरगोन का प्रसिद्ध नवग्रह मेला पारंपरिक तरह से ही लगाया जाएगा। इस मेले में जिले सहित बाहर के अन्य जिलों के लोग भी यहां आते है। यह मेला खरगोन ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में एक पहचान रखता है। यह बात क्षेत्रीय सांसद श्री गजेंद्र पटेल ने शनिवार को नवग्रह मेला मैदान पर भूमिपूजन के दौरान कहीं। इस दौरान उन्होंने पुलिस अधीक्षक श्री शैलेंद्रसिंह चौहान से कहा कि मेला आयोजित होने तक इस क्षेत्र में मादक पदार्थों का विक्रय न हो। इस बात का भी हम सब के साथ पुलिस प्रशासन को ध्यान रखना होगा। क्षेत्रीय विधायक श्री रवि जोशी ने कहा कि इस वर्ष कोरोना की वजह मेला एक माह देरी से लग रहा है, लेकिन खुशी बात यह है कि यह मेला लग रहा है। इसके लिए उन्होंने जिला प्रशासन को धन्यावाद भी दिया। इस अवसर पर पूर्व विधायक श्री बाबुलाल महाजन, एसडीएम सत्येंद्रसिंह व सीएमओ श्रीमती प्रियंका पटेल ने भी संबोधित किया। इस दौरान एएसपी डॉ. नीरज चौरसिया, जिला स्तरीय संकट प्रबंधन समुह के सदस्य, कल्याण अग्रवाल, ओम पाटीदार, नपा के अधिकारी, मेला व्यापारी संघ के सदस्य सहित जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।
सांसद, विधायक व एसपी ने किया भूमिपूजन
नवग्रह मंदिर के नाम से लगने वाले प्रसिद्ध नवग्रह मेला इस वर्ष 15 फरवरी से 15 मार्च तक आयोजित होगा। नवग्रह मेला आयोजित होने से पूर्व शनिवार को सांसद श्री पटेल, विधायक श्री जोशी एवं पुलिस अधीक्षक श्री चौहान ने भूमिपूजन होगा किया। इससे पूर्व इन्होंने नवगृह मंदिर में भी पूजन-अर्चन किया।
जंगल का अहसास कराती नवग्रह वाटिका
जंगल बनाने का उद्देश्य हुआ सफल
खरगोन। वनों को धरती का श्रृंगार माना जाता है और ये वन ही हर किसी शख्स को अपनी ओर आकर्षित करते है। वनों की हरियाली और यहां की आबो हवा न सिर्फ पशुओं के लिए चारा व पक्षियों के लिए आबुदाने का प्रबंध करते है, बल्कि इंसान के लिए भी ताजा और शुद्ध हवा का पर्याप्त मात्रा में निर्माण करते है। खरगोन के नवगृह मेला मैदान स्थित नवग्रह वाटिका में आज से 569 दिनों पूर्व 22 जुलाई 2019 को मियामाकी पद्धति से पौधा रोपण किया गया था। तत्कालीन कलेक्टर श्री गोपालचंद्र डाड ने इस पौधारोपण को एक नई पद्धति के तौर पर नगर पालिका से भूमि तैयार कराई। इस नवीन तकनीक को जिला प्रशासन ने एक आदर्शशील पौधारोपण के तौर पर देखा। इसके सफल होने के बाद जिले के अन्य स्थानों पर भी इसी तकनीक के साथ पौधारोपण करने की योजना बनाई। इसके बाद प्रशासन द्वारा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में पितृ पर्वत पर पौधारोपण की एक नवीन संकल्पना प्रारंभ हुई। सघन पौधारोपण के दौरान कलेक्टर श्री डाड ने कहा था कि सामान्य तौर पर 5 वर्षों में वन का स्वरूप लेने लगता है, लेकिन मियावाकी पद्धति ऐसी है, जिसमें 2 वर्ष में जंगल बनाएं जा सकते है। आखिरकार आज 2 वर्षों से पूर्व ही नवग्रह वाटिका के पौधे जंगल का रूप ले चुका है।
5 से 15 फीट वाले पौधे अब 50 फीट तक हो गए
जिले का संभवतः यह पहला पौधारोपण होगा, जहां 5 से 15 फीट के पौधे आज 569 दिनों में ही 30 से 50 फीट तक बड़े होकर फैलने लगे है। यहां आज एक सघन वन का एहसास होता है। यहां फल, फुल और झाड़ी वाले पौधे पद्धतिनुसार पौधे लगाए गए थे। मियावाकी पद्धति में झाड़ीदार, छोटे पेड़, पेड़ और कैनोपी पौधों का चुनाव किया जाता है। नवग्रह वाटिका के 4439 वर्ग फीट क्षेत्र में 15 हजार पौधे रोपे गए थे। इसमें खमेर, बरगद, पीपल, गुलमोहर, बोगन वेल्लिया, शीशम, अनार, जामुन, आम, नींबू, अर्जून, वॉटर पॉम, आंवला, अमलतास सरीके 30 तरह के पौधे लगाए गए थे।
क्या है मियावाकी पद्धति
मियावाकी वनरोपण की एक नवीन पद्धति है, जिसका आविष्कार जापान के अकीरा मियावाकी वानस्पतिक शास्त्री ने की थी। इसमें पौधारोपण के लिए उपयुक्त मिट्टी के बेड तैयार कर निश्चित आकार में गड्ढे कर पौधे के पनपने की ऊंचाई के अनुसार पौधारोपण किया जाता है। इस पद्धति में दस गुना तेजी से पौधे बढ़ते है। इस पद्धति से पौधारोपण करने का फायदा यह है कि बहुत कम समय में पौधों को जंगल और जंगलों को घने जंगलों में परिवर्तित किया जा सकता है। इस पद्धति से घरों से आगे अथवा खाली पड़े स्थान को छोटे बागानों में बदलकर वनीकरण किया जा सकता है। पौधों की सघनता के कारण सूर्य की रोशनी को धरती पर आने से रोकते है, जिससे धरती पर खरपतवार नहीं उग पाता है। इसके अलावा तीन वर्ष बाद इन पौधों को देखभाल की आवश्यकता नहीं होती।
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