मध्यप्रदेश के धार जिले की बदनावर विधानसभा उपचुनाव में क्या एक और अग्रवाल.....? (पं.प्रदीप मोदी)
बदनावर के राजनीतिक आंगन में खाट लगाकर पसरे महामनीषियों की नीति और नीयत अजीबोगरीब है।विगत चुनाव में "चढ़ जा बेटा सूली पर,भली करेंगे राम" वाली नीति और "पड़ोसी के बेटे को आम पर चढ़ाओ,चढ़ जाएगा तो आम खिलाएगा, नहीं चढ़ पाया, गिरकर मर गया तो नूक्ते-घाटे के लड्डू पक्के, गिरा,मरा नहीं और हाथ-पांव टूट गए तो समाचार पूछने के बहाने चाय-नाश्ता तो मिल ही जाएगा," वाली नीयत रखने वाले नेताओं की तदाद ज्यादा नजर आई है। बदनावर के राजनीतिक आंगन में इस समय विश्वास का अभाव नजर आ रहा है, साथ सब है, लेकिन विश्वास, किसीको किसी पर नहीं है। बस सोशल मीडिया पर समर्थक अपने-अपने नेता के प्रति खुलेआम निष्ठा का प्रर्दशन करते हुए विरोधियों से बहस कर रहे हैं,मुंहजोरी कर रहे हैं, एक-दूसरे को मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। जमीनी स्तर पर बदनावर में अविश्वास का सैलाब आया हुआ है और राजनीतिक आंगन में सब बनावटी मुस्कराहट के साथ मुंह में राम बगल में छूरी लेकर घुमते नजर आ रहे हैं। इसका कारण है, जिन परिस्थितियों में चुनाव हो रहे हैं, उससे बदनावर के राजनीतिक आंगन में उथल-पुथल मची हुई है। बदनावर में चुनाव नहीं, अपितु एक राजनीतिक वटवृक्ष को इधर से उखाड़कर उधर स्थापित किया जा रहा है। वटवृक्ष के नीचे छोटे पौधे कभी नहीं पनपा करते हैं, यह साश्वत सत्य है और प्रदेश शासन के उद्योग मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव बना को बदनावर के राजनीतिक आंगन में खड़ा वटवृक्ष बताया जाता है, जो कल तक कांग्रेस के हिस्से में स्थापित था,अब भाजपा के हिस्से में स्थापित किया जा रहा है और चुनाव को महज औपचारिकता माना जा रहा है। दत्तीगांव के कांग्रेस से भाजपा में आ जाने के बाद चुनाव के लिए एक नाम उभरकर सामने आया कमल पटेल। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच चाहे कमल पटेल का नाम जाना जाता हो, लेकिन जनता के बीच यह नाम चुनाव में ही सामने आया है।उम्र भी पटेल को विघ्न पैदा करेगी, सबसे बड़ी बात व्यक्तित्व जनता को प्रभावित करने वाला वाला होना जरूरी है, क्योंकि राजनीति एकदम युवा हो चुकी है और यह जवानी बदनावर में कांग्रेस को दत्तीगांव बना ही प्रदान किया करते थे, जो अब भाजपा की ओर से चुनाव मैदान में हैं। बदनावर में नीति और नीयत के मामले में ज्यादातर नेताओं की स्थिति एक जैसी है। ये जहां पानी बताएं, वहां कीचड़ नहीं निकले और इसके भुक्तभोगी राजेश अग्रवाल है,बेचारे को चुनाव लड़ने के घुंघरू बांध दिए और भोपाल ले गए, हाईकमान ने सबसे अलग-अलग बात की तो अग्रवाल तो गया तेल लेने, सबने खुद के टिकट की बात की। फिर चुनाव लड़ाया, घोड़ी चढ़ाया,जब तक अर्थ सक्रिय रहा,तब तक नीति और नीयत वाले राजनीतिक मनीषी सक्रिय रहे,वो तो भला हो अग्रवाल के अपने संबंध, सेवा और व्यवहार काम आ गया, उन्हें सम्मानजनक वोट मिल गए। अग्रवाल के साथ यही हुआ था कि चढ़ जा बेटा चुनाव सूली पर,भली करेंगे राम। हांलांकि कमल पटेल के साथ ऐसा नहीं होगा, क्योंकि उनके पास कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है और चुनाव चिन्ह का अपना वोट बैंक है। फिर भी अर्थ की सक्रियता से सक्रिय रहने वाले नेता कमल और कांग्रेस के हित में कितने समर्पित ढंग से काम करते हैं,सब इस पर निर्भर करता है, अन्यथा बदनावर की झोली में एक और को अग्रवाल बनाकर डाला जा सकता है।
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