किसान की रिस्क और मेहनत रंग लाई
पथरीली जमीन में घोली सीताफल की मिठास
खरगोन। जिस जमीन पर सिर्फ कंकड़ और पत्थर दिखाई देते थे, आज वहां शरद ऋतु का मुख्य फल दूर से ही अपनी मिठास और खुश्बू वातावरण में रंग घोलने लगती है। खरगोन से लगभग 25 किमी दूर बिठेर गांव की पथरीली जमीन पर किसान सुनील पाटीदार ने कारनामा कर और अन्य किसानों को भी प्रेरणा का सुत्र दिया है। सुनील ने लगभग 10 वर्ष पूर्व इस कंकड़ व पथरीली जमीन को उपयोग एवं कृषि योग्य बनाने के लिए अपने प्रयास प्रारंभ किए। उद्यानिकी विभाग के साथ मिलकर फलदार पौधे लगाने की योजना बनाई। वर्ष 2010 में उन्होंने कंकड़ और पत्थरों से भरी पथरीली भूमि पर 4 हजार सीताफल के पौधे लगाए थे। आज यह फल खरगोन व जिले के अन्य नगरों में लोगों के मुंह का स्वाद बन रहे है। सुनिल बताते है कि 3 वर्ष बाद सीताफल पकने लगे और वे पैकिंग करने के पश्चात इंदौर मंडी में ले जाया करते थे। अब खरगोन व जिले में भी इसकी मांग बढ़ने लगी है, तो यहां के स्थानीय व्यापारियों को भी फल आने के बाद ठेके पर तुड़ाई के लिए बगीचा बेच देते है। इस वर्ष सुनील ने 4 हजार सीताफल वाले बगीचे को 4.5 लाख रूपए में बेचा है।
हीमोग्लोबिन का अच्छा स्त्रोत होता है सीताफल
शरद ऋतु में प्रमुखता से आने वाला यह फल अक्सर, घरों, गालियां, नालों या मेढ़ पर आसानी से दिखाई देता है। झाड़ीनूमा इस पौधे की खुश्बू व मिठास हर किसी को मोहित करती है। किसान सुनिल पाटीदार के बगीचे में एक सीजन में 40 से 50 किलो के फल लगते है। इन 10 वर्षों में सुनील को काफी अच्छा मुनाफा हुआ है। वैसे तो इस पौधे की ठहनी और पत्ते भी औषधि रूप में काम में आते है। वहीं सीताफल आयुर्वेद में एक औषधि के रूप में शामिल की गई है। इस फल का सबसे अच्छा स्त्रोत पोटेशियन व मैग्नेशियम के साथ-साथ आयरन भी है, जो शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में सहायक होता है। इसके अलावा फायबर की प्रचूर मात्रा होने से ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित करता है।
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