खरगोन गुरव समाज की महिलाओं ने घर मे गोबर से बनाई संजा माता की आकृति, गीत गाकर किया
निमाड़ के लोकपर्व संजा माता के पर्व पर गुरव समाज की महिलाओं
शीतल निमाड़े, रेखा निमाड़े,हर्षा निमाड़े
रश्मि सवनेर, सुमन निमाड़े ने घरों में संजा माता की आकृतियां बनाई। तिलक पथ स्थित अपने घर की छोटी बड़ी बालिकाओं जिसमे वंशिका,
खुशी निमाड़े, अंजली सवनेर , आस्था निमाड़े, दर्शिता सवनेर को साथ लेकर देर रात तक संजा माता के गीत गाए और घर की महिलाओं ने बालिकाओ को सांजा माता का महत्व भी बताया ताकि वे पर्व को लेकर जागरूक हो सके।
महिलाओं ने गोबर से संजा की बड़ी आकृति बनाई शाम को संजा माता की आरती कर संजा बाई के गीत संजा माता जीम ले चूठ ले, जीमाऊं सारी
रात, छोटी सी गाड़ी ढूलकती जाए जिसमे बैठी संजा बाई, जैसे गीत गाये ।
रश्मि सवनेर ने बताया कि देर रात तक संजा माता के गीत गाकर हर साल ऐसे पर्व गुरव समाज द्वारा मनाया जाता है।
जिसमे गुरव व अन्य आसपास की महिलाएं अपनी बेटियों को लेकर शामिल होती है।
उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में दीवारों पर अब भी गोबर से चांद, सितारे, सूर्य व कई प्रकार की आकृतियां बनाई जाती है। इन्हें रंग बिरंगे फूलों से सजाया जाता है। लेकिन शहरों में गोबर से दीवारों पर आकृतियां बनाने का चलन धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। रेडिमेड संजा माता के चित्र को दिवारों पर लगाने की परंपरा प्रारंभ हो गई है।
शीतल निमाडे ने बालिकाओ को संजा पर्व का महत्व बताते हुए कहा की संजा निमाड का प्रसिद्ध पर्व है जिसमें इसे मनाने के साथ साथ इसके गीत ज्यादा लोकप्रिय है। संजा माता को माता पार्वती का रूप माना जाता है , इस पर्व में बारिश के दिनों में गोबर से दीवारों पर संजा माता बनाने से मच्छर घरों में प्रवेश नहीं करते हैं। इससे बीमारियां भी दूर रहती है। संजा माता के पर्व मनाने से निमाड़ी संस्कृति एवं निमाड़ी भाषा को निमाड के साथ साथ अन्य जगह प्रसिद्ध भी मिलती है। संजा माता का विसर्जन अमावस्या तिथि पर नदी में किया जाएगा।
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