कपास में गुलाबी इल्ली के प्रबंधन को लेकर प्रशिक्षण संपन्न
खरगोन 26 अगस्त 2020। स्वामी विवेकानंद सभागृह में कपास की उभरती हुई कीट समस्या गुलाबी इल्ली एवं उसके प्रबंधन को लेकर जिले के किसान कल्याण तथा कृषि विभाग के सभी विकासखंडों के मैदानी अमले के साथ बुधवार को एक दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित हुआ। प्रशिक्षण में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख कपास अनुसंधान केंद्र खंडवा सतीश परसाई ने पॉवर पांइट प्रजेंटेशन के माध्यम से विस्तृत मार्ग दर्शन दिया। उन्होंने कपास में गुलाबी इल्ली की पुर्नत्पति के कारणों को विस्तार से बताते हुए कहा कि बीटी कपास बीज के प्रत्येक पैकेट के साथ एक नान बीटी का पैकेट भी आता है। इसकी 5 कतारें मुख्य फसल के चारों ओर लगाया जाना आवश्यक है, लेकिन कपास उत्पादक किसान इसे आरंभ से ही नही लगा रहे है। इस कारण गुलाबी इल्ली में प्रतिरोधकता विकसित हो गई है। यह इस कीट की पुर्नत्पति का मुख्य कारण है। वर्ष भर क्षेत्र में कपास की उपलब्धता, बीटी कपास की सैकड़ों जातियों की उपलब्धता जिनमें अलग-अलग समय पर फलन होता है, ये अन्य कारणों में सम्मिलित है। इसी वजह से कीट को वर्ष भर पोषण मिलता है और वह क्षेत्र में पुनः नई समस्या बनकर उभर रहा है।
कपास में पुष्पन आरंभ होते ही प्रति एकड़ खेत में चार फीरोमोन प्रपंच लगाएं
श्री परसाई ने मैदानी अमले से कहा कि वे कपास में पुष्पन आरंभ होने के साथ ही प्रति एकड़ खेत में चार फीरोमोन प्रपंच लगाएं। इनमें प्रतिदिन एकत्रित होने वाली वयस्क पंखियो का रिकार्ड रखे। जैसी ही खेत में प्रति प्रपंच आठ या अधिक पंखियां आने लगे तब खेत से बिना किसी भेदभाव के दस हरे घेंटो का चयन करें। इन हरे घेंटो में इल्लियों की उपस्थिति को देखे। यदि औसत रूप से एक या अधिक घेंटो में कीट प्रकोप है तब कीटनाशको का उपयोग आरंभ करे। प्रारंभ में प्रोफेनोफास या थायडिओकार्ब या क्यूनालफास जैसे कम विषैले कीटनाशको में से किसी एक का चुनाव कर उपयोग करे, माह नवंबर में अधिकतम फलन एवं कीट प्रकोप की स्थिति में ही लेम्डा सायहेलोथ्रिन या एमामेक्टिन बेन्जोएट या क्लोरानट्रिनिपाल था इंडाकार्ब जैसे अधिक विषैले कीटनाशको को उपयोग करे। उन्हांेने अपील की कीटनाशकों को अनावश्यक मिलान से बचे, एक ही कीटनाशक का बार-बार उपयोग न करे।
गुलाबी इल्ली की समस्या पर हमंे आरंभ से ध्यान देने की आवश्यकता
अपर कलेक्टर श्री एमएल कनेल ने कहा की गुलाबी इल्ली की समस्या पर हमंे आरंभ से ध्यान देने की आवश्यकता है। मैदान अमला किसानों से जीवंत संपर्क रख इस कीट का सामायिक प्रबंधन कर कपास का अच्छा उत्पादन में सहयोग करें। कृषि उप संचालक एमएल चौहान ने प्रशिक्षण के उद्देश्य और रूपरेखा को बताया। उन्होंने मैदानी अमले को निर्देशित करते हुए कहा कि इस प्रशिक्षण में प्राप्त जानकारी को अपने-अपने क्षेत्र के किसानों को अवश्य बताएं। प्रशिक्षण में अनुसंधान सह संचालक डॉ. एके खिरे, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ वायके जैन एवं कृषि सहायक संचालक आरएस बड़ोले उपस्थित रहे।
स्व-सहायता समूह द्वारा निर्मित मास्क के विक्रय केंद्र का एसडीएम ने किया शुभारंभ
खरगोन। मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन विकासखंड भीकनगांव के अंतर्गत संचालित स्व-सहायता समूह के द्वारा कोरोना संक्रमण के दौरान महत्वपूर्ण कार्य किए जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण की रोकथाम एवं बचाव के लिए स्व-सहायता समूह के द्वारा मास्क, हैंड सेनीटाईजर एवं पीपीटी कीट निर्माण कार्य किया जा रहा है। भीकनगांव विकासखंड के ग्राम साईंखेड़ी में संचालित नर्मदा आजीविका स्व-सहायता समूह के द्वारा अभी तक 7 हजार से अधिक मास्क तैयार किए है। मास्क विक्रय एवं मांग की जा रही है उसके अनुसार मास्क निर्माण का कार्य किया जा रहा है। बुधवार को भीकनगांव एसडीएम राहुल चौहान द्वारा ग्राम साईंखेड़ी में स्व-सहायता समूह नर्मदा आजीविका समूह का मास्क निर्माण केंद्र का निरीक्षण किया और स्व-सहायता समूह को आगे लाते हुए और सशक्त करने के लिए भीकनगांव नगर परिषद में एक मास्क वितरण केंद्र की शुरुआत की गई। एसडीएम श्री चौहान द्वारा सभी शासकीय विभागों को निर्देशित किया है कि स्व-सहायता समूह के द्वारा निर्मित मास्क खरीदकर अपने विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों में वितरित करें।
भीकनगांव विकासखंड में 4 समुह है कार्यरत
आजीविका मिशन की परियोजना अधिकारी श्रीमती सीमा निगवाल ने बताया कि भीकनगांव विकासखंड में वर्तमान में 4 स्व-सहायता समूह कार्यरत हैं। इनमें नर्मदा आजीविका समूह साईंखेड़ी, सामर बाबा आजीविका समूह कांझर, राधिका समृद्धि आजीविका समूह अगरिया, एकता आजीविका समूह दौड़वा शामिल है। इनमें से साबर बाबा आजीविका समूह कांझर के द्वारा अभी तक 100 पीपीटी कीट का निर्माण किया जा चुका है। वहीं लगभग 17 हजार मास्क का निर्माण एवं वितरण किया जा चुका है। इस अवसर पर तहसीलदार, नायब तहसीलदार, थाना प्रभारी, जनपद पंचायत सीईओ एवं नगर परिषद सीएमओ उपस्थित रहे।
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