नियमों की धज्जियां उड़ा रहे क्रेशर संचालक

 


 


बे-ख़ौफ़ हो रहा अवैध उत्खनन ओर परिवहन।


 



 


 खनिज विभाग अपने दायित्वों के प्रति संजीदा नज़र नहीं आ रहा है, नतीजा जिले में रेत व गिट्टी का अवैध उत्खनन ओर परिवहन धड़ल्ले से हो रहा है। यहां क्रेशर संचालकों की मनमानी का आलम ये है कि वे सरकारी नियमों को ताक में रख, लीज़ की सीमा लांघ कर शासन को लाखों का चूना लगाकर अपनी जैब गर्म कर रहे हैं। विडम्बना है कि खनिज अमले की इस ढुलमुल कार्यप्रणाली पर जिला कलेक्टर भी चुप्पी साधे हैं।


 


 


खरगोन ।(मनीष मड़ाहर ) जिले का खनिज विभाग न तो रेत और गिट्टी के अवैध उत्खनन और परिवहन को रोक पा रहा है न जिले भर में नियमविरुद्ध ढंग से संचालित होने वाले क्रेशर पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है। खनिज विभाग की लापरवाही ओर अनियमिताओं को कलेक्टर भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। एक लंबे अर्से से यही खेल चल रहा है। इस पर अंकुश लगाने की जिमेदारी खनिज विभाग की है लेकिन विभाग आंखो में पट्टी बांधे बैठे हैं। इस कारण स्थिति में सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। चूंकि इनके संचालन में पत्थरों की तुड़ाई के समय काफी ध्वनि व डस्ट उत्सर्जित होती है और काफी दूर तक बवण्डर बनकर उड़ती है। इसलिए पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने इनके लिए प्रावधान तय किए हैं जिसका पालन करना जन स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के लिए अनिवार्य माना जाता है। जिले में संचालित क्रेशरों की संख्या लगभग 70-80 बताई गई है, लेकिन यदि प्रशासनिक अधिकारी कड़ाई से इन क्रेशर स्थलों का जायजा लें तो शायद ही ऐसा कोई क्रेशर होगा जहां प्रावधान का पालन होता पाया जाएगा। लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों की टीम इन क्रेशरों का न तो औचक निरीक्षण करती और न इन पर अंकुश लगाती है। शासन ने किए यह प्रावधान क्रेशर संचालन के लिए शासन ने प्रावधान तय किए हैं। जिसके अंतर्गत पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निर्धारित प्रावधानों के अनुरूप क्रेशरों से चूंकि डस्ट निकलती है इसलिए इसका संचालन बस्तियों और शैक्षणिक संस्थाओं से काफी दूर होना चाहिए। डस्ट को कव्हर करने के लिए स्थल पर निरंतर पानी का छिड़काव कराया जाना चाहिए। क्रेशर स्थल के आसपास लगभग 8 फुट ऊंची वाउण्ड्रीवाल होनी चाहिए। क्रेशल स्थल के आसपास पौधे रोपित कराए जाने चाहिए। लेकिन इन सभी प्रावधानों का एक साथ पालन किसी भी क्रेशर में नहीं किया जाता है। स्थिति यह है कि कहीं वृक्षारोपण कराया गया है तो कहीं नहीं कराया गया है। अधिकांश क्रेशर स्थलों में पानी का छिड़काव नहीं कराया जाता है। अधिकांश क्रेशर ऐसे हैं जिनमें बाउण्ड्रीवाल की घेरे बंदी तक नहीं है। क्रेशर संचालक प्रावधानों पर खरे नहीं उतर रहे हैं इसके बावजूद उन पर नकेल नहीं कसी जा रही है। जमकर गिट्टियों की सप्लाई हो रही है और क्रेशर संचालक ताबड़तोड़ मुनाफा कमा रहे हैं तथा पर्यावरण व जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं फिर भी इनकी खबर लेने अधिकारियों को फुर्सत नहीं। जिले में आज तक क्रेशर बंद होते नहीं सुने गए जबकि नए संचालित हो रहे हैं।


 


पत्थरों का अवैध उत्खनन भी।


 


जिले में क्रेशरों के उपयोग के लिए जमकर पत्थरों का अवैध रूप से उत्खनन किया जा रहा है। सेल्दा व बडवाह ब्लाक की पहाड़ी क्षेत्रों व पहाडियों से अंधाधुंध पत्थर निकाले जा रहे हैं। जिससे धरती का स्वरूप बिगड़ रहा है। पत्थर निकाल कर उनसे गिट्टियां बनाकर उनकी सप्लाई तो कर दी जाती है और क्रेशर संचालकों को धन तो मिल जाता है लेकिन भौगोलिक स्थिति और खनिज राजस्व का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है। जिले भर की राजस्व भूमियों में फैले प्राकृतिक संपदा का दोनो दोनो हाथों से दोहन किया जा रहा है, भारी मशीने संचालित की जा रहीं हैं लेकिन इनकी रोकथाम के लिए उपाय करने और ठोस कदम उठाने की जरूरत नहीं समझी जा रही है। हैरानी की बात यह है कि प्रशासनिक अधिकारियों की तरह जनप्रतिनिधि भी चुप्पी साधे रहते हैं। आज तक अवैध उत्खनन को लेकर जनप्रतिनिधियों की ओर से न कभी आवाज उठायी गयी और न कभी भी आंदोलन किया गया।


 


लीज की जांच पड़ताल नहीं करते।


के्रशर संचालकों ने पत्थरों की खदान के लिए लीज तो ले रखी है लेकिन खनिज विभाग के अधिकारी यह देखने की आवश्यकता नहीं समझते कि पत्थर लीज की एरिया से निकाले जा रहे हैं अथवा उसका उल्लंघन कर इधर-उधर से लाए जा रहे हैं। अधिकांश क्रेशर संचालक जिन रकबों में खदान स्वीकृत की गई है उनसे अलग हटकर पत्थर का उत्खनन कर रहे हैं। स्वीकृति देने के बाद इस बात का भौतिक सत्यापन कभी नहीं किया जाता है कि पत्थर का उत्खनन कहां से किया जा रहा है। इस कार्य में उत्खननकर्ता लीज के रकबे का कहां तक उपयोग किया जाता है। इन सब में सीधे सीधे खनिज अधिकारी की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध है। जिस तरह के कार्यों को खनिज अमला अंजाम दे रहा है ऐसे में तो इस पूरे जिले की प्राकृतिक भूगोल का स्वरूप ही बिगड़ जाएगा। इस पूरे मामले में पर्यावरण विभाग के साथ खनिज अमला बराबर का दोषी है।


 


शिकायत पर जांच नही होती।


 


नियमो का पालन नही करने वाले क्रेशर संचालकों की शिकायत पर खनिज अधिकारी जानेश्वर तिवारी के द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही नही करने के कारण तिवारी की कार्यप्रणाली संदेह से घेरे में नज़र आ रही है ।


 


 


सांसद की दखल को लेकर कवायद शुरू।


 


जिले में खनिज विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर चर्चाएं गर्म है। बताया जा रहा है कि पूर्व कांग्रेस के शासनकाल में जनप्रतिनिधियों के चहेते खनिज अधिकारी जानेश्वर तिवारी बे-लगाम होकर भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को लगातार निशाना बनाकर तगड़ी पैनाल्टी लगा रहे थे, वहीं बड़े-बड़े रेत माफ़ियाओं को खुली छूट देकर जमकर बंदरबांट कर रहे थे। लेकिन वर्तमान में राजनीतिक परिदृश्य बदलने के बाद खनिज अधिकारी तिवारी की कारगुज़ारियों को लेकर सांसद गजेन्द्रसिंह पटेल के पास शिकायतें पहुंचने लगी है। अब देखना होगा कि तेज़ तर्रार कार्यप्रणाली के युवा सांसद खनिज विभाग पर कब कसावट करते हैं। वैसे वे पहले ही कह चुके हैं खरगोन-बड़वानी संसदीय क्षेत्र में किसी भी तरह अवैध कारोबार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, उनका ये तल्ख़ इशारा विशेषकर रेत माफ़ियाओं पर अंकुश लगाने की तरफ था।


 


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