नजरपुर में गिलहरी की पसंद स्ट्रॉबैरी, महिला की नवाचारी सोच रंग लाई
खरगोन 20 फरवरी 2020। महेश्वर शहर से लगभग 10 किमी दूर स्थित पहाड़ी अंचल ग्राम नजरपुर में इन दिनों हेलमता खराड़े के खेत में स्ट्रॉबैरी की बहार आई है। वर्षों से खेती करने वाली हेमलता ने पहली बार अपने खेत में प्रयोग के तौर पर स्ट्रॉबैरी लगाना पसंद किया। हथकरघा समुह की सदस्य के रूप में काम करने वाली हेमलता ने निमाड़ उत्सव के दौरान झिरन्या क्षेत्र में स्ट्रॉबैरी की खेती करने वाले पन्नालाल सोलंकी द्वारा लगाए गए स्टॉल से 1 पैकेट खरीदा। जब पहली बार स्ट्रॉबैरी चखा, तो वो भी मुरीद हो गई। अब हेमलता ने भी तय किया कि क्यों न मैं भी इसकी खेती कंरू? उसके बाद से लगातार स्ट्रॉबैरी की जानकारी लेने के लिए कृषि विभाग के आत्मा परियोजना से संपर्क किया। आत्मा परियोजना ने नवाचार के अंतर्गत हेमलता खराड़े को अक्टूबर माह में 2 हजार पौधे से स्ट्रॉबैरी के पौधे प्रदान किए।
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अब तक की 10 बार स्ट्रॉबैरी की तुड़ाई।
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नजरपुर पहाड़ी अंचल में बसा है। हेमलताबाई ने बताया कि यहां एक ही समस्या है, गिलहरी अपने कुनबे के साथ स्ट्रॉबैरी खाकर खराब कर दिया करती है। इससे निजात पाने के लिए उनके पुत्र संजय ने दो बाटलों के साथ पत्थर को एक लंबी डोर से घर बैठे-बैठे नियंत्रित करने की युक्ति निकाली है। घर बैठे-बैठे उस डोर को खिंचने से बोटले आपस में टकराती हैं। इस आवाज से गिलहरी भागती है। जनवरी माह के पहले सप्ताह से हेमलता के खेत में स्ट्रॉबैरी आना शुरू हुई। अब तक उन्होंने 10 बार स्ट्रॉबैरी की तुड़ाई की है। इस दौरान उन्हें लगभग डेढ़ क्विंटल स्ट्रॉबैरी की फसल ले चुकी है। बेचने के लिए हेमलता अपने परिवार के बच्चों के साथ 2.50-2.50 ग्राम के पैकेट बनाती है। महेश्वर चूंकि पर्यटन की दृष्टि से एक अच्छा स्थल है, इसलिए यहां आने वाले पर्यटक स्ट्रॉबैरी भी खाना पसंद करते है। 5 से 6 दिनों में तुड़ाई करने के बाद एक दम ताजा स्ट्रॉबैरी के 100 पैकेट महेश्वर स्थित कभी-कभी अन्य स्थलों पर भी बेचने के लिए ले जाते है, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो जाता है। विभाग द्वारा इस नवाचारी योजना में मल्चिंग और ड्रीप भी प्रदान किया गया है।
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